Header Ads

स्त्री की परिभाषा-भगवद्गीता के अनुसार, श्री कृष्ण की वाणी । निर्लज स्त्री के बारे में श्री कृष्ण क्या कहते हैं? शस्त्रों में स्त्री के रूप और गुण के बारे में किस तरह का वर्णन किया गया है?

स्त्री की परिभाषा-भगवद्गीता के अनुसार। विस्तार से वर्णन करें।



भगवद्गीता, भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली एक अमृतवाणी है जो महाभारत के महायुद्ध के समय अर्जुन को दिया गया था। गीता के अध्याय 16 में सत्त्व, रज और तम - तीन गुणों का विवेचन किया गया है, जिसमें स्त्री की परिभाषा भी मिलती है।

गीता में स्त्री की परिभाषा विशेषत: दैवी सम्पद् (दिव्य गुणों वाली) के संदर्भ में की जाती है। यहां भगवान श्रीकृष्ण द्वारा स्त्री के दैवी स्वभाव की विशेषताएं बताई जाती हैं।

भगवद्गीता अध्याय 16, श्लोक 3:

"दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पादामासुरीम्।।16.3।।"

अनुवाद:

"हे पार्थ! दैवी सम्पदा युक्त पुरुष का दम्भ, गर्व, अभिमान, क्रोध और पारुष्य का अभाव होता है, जबकि असुरी सम्पदा युक्त पुरुष की अज्ञानमयी प्रवृत्ति होती है।"


इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्त्री के दैवी सम्पद की विशेषताओं को वर्णित कर रहे हैं:

1.    दम्भ (हृदय में कपट): स्त्री के दैवी स्वभाव में दम्भ, यानी हृदय में कपट की अभावना होती है।


2.    दर्प (अभिमान): उनमें अभिमान का अभाव होता है, जिससे वे अपने आत्म-महत्व को बहुत ऊँचा नहीं मानतीं।


3.    अभिमान (गर्व): स्त्री के दैवी स्वभाव में गर्व नहीं होता, यानी वह अपने गुणों में मतिमान रहती है।


4.    क्रोध (क्रोध): उनमें क्रोध की भावना नहीं होती, जिससे वे उदार और सही तरीके से प्रतिस्पर्धा करतीं हैं।


5.    पारुष्य (कठोरता): उनमें पारुष्य, यानी कठोरता नहीं होती, बल्कि वे अनुग्रहशील और कृपाशील होतीं हैं।


इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि स्त्री को दैवी स्वभाव से युक्त गुणों के साथ जीना चाहिए, जो उसे उद्धारण और सुख की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

श्री कृष्ण की वाणी - स्त्री के संबंध में। विस्तार से बताएं.


श्रीकृष्ण के विचार और उनकी वाणी महाभारत और भगवद गीता के माध्यम से हमें सिखने को मिलते हैं। वे धर्म, भक्ति, और मोक्ष के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने वाले थे। श्रीकृष्ण की वाणी में स्त्री के संबंध में भी कई महत्वपूर्ण उपदेश शामिल हैं।

1.    स्त्री का सम्मान: श्रीकृष्ण ने स्त्री का सम्मान करने का उत्साह दिखाया। उन्होंने स्त्री को समाज में उच्च स्थान पर रखने की बातें की और स्त्री का सम्मान करने के लिए सभी को प्रेरित किया।


2.    सामर्थ्य और साहस: श्रीकृष्ण ने स्त्री को सामर्थ्य और साहस की प्रेरणा दी। उन्होंने महाभारत के समय स्त्रीयों को साहसी और समर्थ बनने के लिए प्रेरित किया।


3.    भक्ति की महत्वपूर्णता: श्रीकृष्ण ने भक्ति को महत्वपूर्ण माना और उनकी वाणी में स्त्रीयों को भी भगवान की उपासना करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि भक्ति के माध्यम से स्त्री भी भगवान के पास पहुँच सकती हैं।


4.    कर्मयोग और समर्पण: श्रीकृष्ण ने स्त्रीयों को कर्मयोग और समर्पण की भावना से जुड़े रहने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि कर्मयोगी अपने कर्तव्यों को निष्कलंक भाव से पूरा करता है और समर्पण से जीवन को महत्वपूर्ण बनाता है।


5.    आत्म-समर्पण: श्रीकृष्ण ने स्त्रीयों को आत्म-समर्पण की भावना से जीवन जीने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि स्त्री अपने को पूर्णता के साथ भगवान को समर्पित करके आदर्श जीवन जी सकती हैं।


6.    सम्बंधों का सार्थक्य: भगवान श्रीकृष्ण ने संबंधों के सार्थक्य पर भी बातें की। उन्होंने विभिन्न सम्बंधों में सार्थक्य और समर्पण की महत्वपूर्णता को बताया।

श्रीकृष्ण की वाणी में स्त्री के संबंध में ये सिखें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और यह हमें धार्मिक और सामाजिक संबंधों में सही मार्गदर्शन करते हैं।

आगे पढ़ें...स्वस्थ जीवन- विकास की पहली सीढ़ी, स्वास्थवर्धक भोजन क्या होता है? विस्तार से चर्चा, स्वस्थ रहने के टिप्स

निर्लज स्त्री के बारे में श्री कृष्ण क्या कहते हैं? विस्तार से वर्णन करें।

Top of Form

 


भगवद गीता में, श्रीकृष्ण ने निर्लज स्त्री के बारे में सीधे रूप से विस्तार से नहीं बोला है, लेकिन उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है जिससे हम इस परिस्थिति को समझ सकते हैं।

भगवद गीता में, श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म और भक्ति का महत्त्व बताया है। उन्होंने यह भी बताया है कि कर्म करते समय हमें फल की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए और हमें ईश्वर के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए। 

 श्रीकृष्ण ने सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सही आचरण की महत्ता पर भी बातें की हैं। वह न्याय, धर्म, और सामाजिक न्यूनतम मानकों की प्रमोट करते हैं। 

  भगवद गीता के अंतर्गत, श्रीकृष्ण ने स्त्री की आदर्श भूमिका को भी महत्त्वपूर्णता दी है। वह स्त्री को अपने पुरुषार्थों में सफलता प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करते हैं और समाज में उसकी सम्मान की आवश्यकता को भी मान्यता प्रदान करते हैं। 

  श्रीकृष्ण के उपदेशों में, सभी व्यक्तियों को ईश्वर के प्रति समर्पण करने का आदान-प्रदान किया गया है, जिससे उनके अनुयायियों को सच्चे और निर्लज जीवन की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है। 

  इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने निर्लज स्त्री के साथ उच्च स्थान पर सम्मान और समर्पण की भावना को प्रोत्साहित किया है, और उनके उपदेशों में सामाजिक न्याय और समर्थन के प्रति भी जोर दिया गया है।

 आगे पढ़ें....ऑनलाइन पैसे कमाने का आसान तरीका

शस्त्रों में स्त्री के रूप और गुण के बारे में किस तरह का वर्णन किया गया है?


भारतीय शास्त्रों और इतिहास ग्रंथों में, स्त्री के रूप और गुणों का वर्णन विभिन्न प्रकार से किया गया है। यह वर्णन विभिन्न सांस्कृतिक संस्कृतियों और कालों के अनुसार बदलता रहा है, लेकिन कुछ सामान्य आदान-प्रदान हैं जो बहुत स्त्रियों को सम्बोधित करते हैं।

1.    गृहलक्ष्मी: वेदों और पुराणों में स्त्री को गृहलक्ष्मी, घर की लक्ष्मी, कहा गया है। उसके माध्यम से ही घर में समृद्धि, शांति, और सौभाग्य का अनुभव होता है।


2.    अर्थनारीश्वरी: कुछ सांस्कृतिक संस्कृतियों में स्त्री को अर्थनारीश्वरी या धनेश्वरी कहा गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि वह अर्थ और धन का आधार होती है।


3.    शक्तिरूपा: तांत्रिक साधनाओं में और शक्तिपीठों में, स्त्री को देवी और शक्ति की रूप में समर्पित किया जाता है।


4.    गुणवत्ता: स्त्रियों के गुणों का वर्णन भी किया गया है, जैसे कि सौम्य, क्षमाशील, धैर्यशील, और सामर्थ्यपूर्ण।


5.    पतिव्रता: सती सतीत्व और पतिव्रता बनाने के लिए स्त्रियों को प्रेरित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे वे अपने पति के प्रति समर्पित रह सकें।


6.    शिक्षित स्त्री: कुछ सांस्कृतिक समाजों में स्त्री को शिक्षित बनाने का प्रमाण मिलता है और उसे समाज में सकारात्मक योगदान देने का अधिकार होता है।


ये सुझाव सामान्य हैं और भिन्न सांस्कृतिक संदर्भों में इस विषय पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखे जा सकते हैं।

स्त्री के रूप और सौंदर्य के बारे में शास्त्रों में क्या कहा गया है?


भारतीय शास्त्रों में स्त्री के रूप और सौंदर्य के विषय में विभिन्न पासागों में विविधता है। यहां कुछ सामान्य प्रमुख विचार दिए जा रहे हैं:

1.    आयुर्वेद: आयुर्वेद में सौंदर्य और स्वस्थ रहने का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्त्री की सुंदरता को बनाए रखने के लिए आहार, व्यायाम, और उपचार की विविध विधाएं बताई गई हैं।


2.    नाट्यशास्त्र: भारतीय नाट्यशास्त्र में रूप, रंग, भावना, और अंग प्रति स्त्री के अभिव्यक्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका हैं। सुंदरता के अनुकरण में स्त्री को कुशलता का प्रदर्शन करना आवश्यक है।


3.    कामशास्त्र: कामशास्त्र में स्त्री के सौंदर्य को बढ़ावा दिया गया है। सौंदर्य को बढ़ाने के लिए सुरक्षित और सौभाग्यशाली जीवन के लिए विभिन्न सुझाव दिए गए हैं।


4.    कामसूत्र: कामसूत्र में भी स्त्री के सौंदर्य और आकर्षण के विषय में चर्चा है। सौंदर्य का महत्त्व रखा गया है और यह कहा गया है कि सही रूप से देखने वाले के लिए स्त्री का सौंदर्य अत्यधिक आकर्षक हो सकता है।


5.    कविता और साहित्य: भारतीय साहित्य और कविता में भी स्त्री के सौंदर्य का स्तुति किया गया है। कवियों ने उनकी सुंदरता, आकर्षण, और शृंगार रस की महत्ता को बताया है।


6.    स्त्री के रूप में देवी भक्ति: भक्ति आंदोलनों में, स्त्री को देवी के रूप में पूजा जाता है, और उसका समर्पण उन्हें शक्ति और सौंदर्य की सबसे ऊँची दर्जा में उठाता है।


ये विचार सामान्य तौर से हैं और भिन्न संस्कृतियों, कालों और विचारधाराओं में इस विषय पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.